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Thursday, May 24, 2012



अभिलाषा 

" लो आज चला इस दुनिया से, साथी न मिला इस धरती पर।

यदि अपना सा मैं तुम्हे लगु, दो फूल चढ़ाना अर्थी पर।

ये मौन हड्डियाँ मेरी अब, तुमको न बुलाने आएँगी।

कुछ समझ सको तो आ जाना, वरना युही जल जाएँगी।

यूँ तो जीवन भर जला किया, पर आज आखिरी ज्वाला है।

तुम दो आँसू छलका देना, समझूंगा की वर माला है।

कुछ बोल न पाउँगा मुख से, अब लपट चिता की बोलेगी।

जो छिपा रहा था जीवन भर, वो भेद तुम्हीं से खोलेगी।

बल पाकर धुआं उठेगा जब, तुम पढ़ लेना उसकी भाषा।

फिर मिलाना पुनर्जन्म में तुम, यही है अंतिम अभिलाषा..."

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भय ही प्रबल है।

दो उल्लू एक वृक्ष पर आ कर बैठे। एक ने साँप अपने मुँह में पकड़ रखा था।  दूसरा एक चूहा पकड़ लाया था।  दोनों जैसे ही वृक्ष पर पास-पास आकर बैठे।...