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Saturday, December 14, 2019

Summer Vacation

Wo mama ka ghar, wo garmi ki chhuttiya
Wo maigi, wo mango, wo pant khol chicken khana
Wo amrud ke ped, wo nana ka gussa
Wo nani ki lori, wo mami ka dular
Wo mama ka padhana, wo mausi ka pyar
Wo badapan ka ahsaa, wo chhoto se ladna aur mar.
Bahut yaad aate hai bachapan ke din
Jab sochate hai akele, bhai bahano ke bin

Friday, December 13, 2019

मैं ख़फ़ा हूँ.......

ना समझे कोई की, मैं क्यों लगने लगा जुदा हूँ,
कैसे कहु मैं तुमसे, की मैं ख़फ़ा हूँ.

बिन जाने, अनजाने या, फिर जानबूझकर
तुमने बोला, कहा, किया मुझे पराया,
ये भी न सोचा , ये भी न जाना,
मैं हूँ वही जिसने, तुमसे तुमको ही चुराया.

हार गया मैं खुद से ही आज, जब से जानी तेरी बातें,
भूल गया तू, कटती नहीं थी एकदूजे बिन ये रातें।

कह दिया जो मन में आया, झूठा , सच्चा या बेमानी,
क्या गलती थी मेरी इसमें, जो हमने ना स्वप्न में जानी.

मिला लिया औरो को भी, अपनी इस करतूत में,
जिनको दिया दिल, और रखा था, हमने अपने ताज पे
कुछ भी करो तुम, रह लो कही तुम
हम है वही और वही रहेंगे, जो भागे एक आवाज पे

अच्छा नहीं की मुझे गिरा कर, तुम ऊँचे बन जाओगे
कहा जाओगे , जहाँ जाओगे, अंत में मुझे बुलाओगे

क्या  शाबित करना था तुमको, बुरा बना कर मुझे अंत में
भूल गए थे क्या तुम जीवन, बड़ा पड़ा है इस अनंत में।

हद होती है खुदगर्ज़ी की, हद होती है मनमर्जी की
समय छड़ीक है सुंदरता का, और छड़ीक अभिमान का
बड़ा बड़प्पन और संयम है, जो मैं मुझमे लिए हूँ
कैसे कहु मैं तुमसे, की मैं ख़फ़ा हूँ.

                              - अमित (बड़े दिल वाला)

Friday, December 6, 2019

मेरा देश बदल रहा है..

मेरा देश बदल रहा है, कुछ अच्छा हो रहा है.
अच्छे दिन आएंगे , अच्छे दिन आएंगे
सुना तो बहुत था, मगर यकीं नहीं था
लगा ये भी बस एक चुनावी सगूफा ही बन का रह जायेगा
मगर नहीं आज अच्छा दिन आया,
भले ही ये चुनावी वादा न हो,
भले ही किसी का पहले से तय इरादा न हो
पर कुछ हुआ, सोच बदली, देश बदला।
जय हो इन वीरो को, इनको सोच को
इनके किये काम को, पापियों के अंजाम को
अब नहीं खिलाएंगे, बिठा के जेल में,
जो कुछ भी होगा, जल्दी होगा.
घिनौनी सोच पे लगाम लगानी होगी
नहीं तो ऐसे ही चौराहे पे गोली खानी होगी
माँ, बहन , बेटी अब सुरक्छित होंगी.
सब पर कानून की अब कड़ी नजर होगी.
क्यों कुछ ही लोग इस करनी को अंजाम दे
क्यों नहीं न्याय व्यवस्था इसे अपना नाम दे
जब डर होगा, सीने में, भय होगा पीने  में.
कोई नहीं निकलेगा , गलत राहों पे ,
बहुत सकूँ होगा जीने में,
                            - अमित 

*****_ JINDAGI_*****

Jindagi ka safar bhi ajeeb hota hai,
pal bhar me naseeb cheer cheer hota hai.
soocha hua gar ho jaye mumkeen,
samajha jao yaaro ye hona tha ek din.
nahi to kabhi kuch ka kuch hai ho jata,
soocha mila paya sab hai kho jata.
ye kismat ka khela koi bhi na sajha,
ho jaye man ka to samjho achha.
nahi to na roona ye kya ho raha hai,
honi ka yaaro tal kya saka hai.

--------Amit Kumar Shrivastava(02/05/2005)

Sharing from my old collections.

कैसे बताऊँ मैं तुम्हें… ????

कैसे बताऊँ मैं तुम्हें….
मेरे लिये तुम कौन हो……
कैसे बताऊँ !!!
कैसे बताऊँ मैं तुम्हें
तुम धड्कनॊं का गीत हो,
जीवन का संगीत हो!
तुम जिन्दगी, तुम बन्दगी !
तुम रोशनी, तुम ताजगी!
तुम हर खुशी, तुम प्यार हो !
तुम प्रीत हो, मनमीत हो !
आँखों में तुम, यादों में तुम !
साँसों में तुम, आहों में तुम !
नींदों में तुम, ख्वाबों में तुम !
तुम हो मेरी हर बात में…
तुम हो मेरे दिन रात में !
तुम सुबह में तुम शाम में !
तुम सोच में तुम काम में !
मेरे लिये पाना भी तुम !
मेरे लिये खोना भी तुम !
मेरे लिये हँसना भी तुम !
मेरे लिये रोना भी तुम !……… और जागना सोना भी तुम !!!
जाऊँ कहीं देखूँ कहीं…
तुम हो वहाँ…तुम हो वहीं !
कैसे बताऊँ मैं तुम्हें…….. तुम बिन तो मैं कुछ भी नहीं !!!
कैसे बताऊँ मैं तुम्हें….मेरे लिये तुम कौन हो !!!
ये जो तुम्हारा रूप है…ये जिन्दगी की धूप है !
चन्दन से तरसा है ये बदन …बहती है ईसमें एक अगन !
ये शोखियाँ ये मस्तियाँ …. तुमको हवाओं से मिली !
जुल्फ़ें घटाओं से मिली !
होठों में कलियाँ खिल गयीं….. आखों को झीलें मिल गयीं !
चेहरे में सिमटी चाँदनी….. आवाज में है रागिनी !
शीशे के जैसा अंग है…फ़ूलों के जैसा रंग है !
नदियों के जैसी चाल है… क्या हुस्न है ..क्या हाल है !!!
ये जिस्म की रंगीनियाँ…… जैसे हजारों तितलियाँ !
बाहों की ये गोलाईयाँ…. आँचल में ये परछाईयाँ !!!
ये नगरियाँ हैं ख्वाब की…..कैसे बताऊँ मैं तुम्हें..हालत दिल – ऎ – बेताब की !!!
कैसे बताऊँ मैं तुम्हें….मेरे लिये तुम कौन हो !!!
कैसे बताऊँ….कैसे बताऊँ….
कैसे बताऊँ मैं तुम्हें….मेरे लिये तुम धरम हो !!!
मेरे लिये ईमान हो !
तुम ही ईबादत हो मेरी…… तुम ही तो चाहत हो मेरी !
तुम ही अरमान हो मेरा !
तकता हूँ मैं हर पल जिसे.. वही तो तस्वीर हो तुम.
तुम ही मेरी तकदीर हो.
तुम ही सितारा हो मेरा…. तुम ही नजारा हो मेरा.
यूँ ध्यान में मेरे हो तुम..जैसे मुझे घेरे हो तुम.
पूरब में तुम, पश्चिम में तुम!!!….उत्तर में तुम, दक्षिण में तुम !!!
सारे मेरे जीवन में तुम.
हर पल में तुम…हर छिन में तुम !!!
मेरे लिये रस्ता भी तुम…. मेरे लिये मन्जिल भी तुम.
मेरे लिये सागर भी तुम..मेरे लिये साहिल भी तुम.
मैं देखता बस तुमको हूँ….मैं सोचता बस तुमको हूँ.
मैं जानता बस तुमको हूँ… मैं मानता बस तुमको हूँ.
तुम ही मेरी पहचान हो…!!!
कैसे बताऊँ मैं तुम्हें…. देवी हो तुम मेरे लिये.
मेरे लिये भगवान हो !!!
कैसे बताऊँ मैं तुम्हें….मेरे लिये तुम कौन हो !!!
कैसे……….. ????

                                          -  दिल के करीब  -   फ्रॉम - एल्बम : वजूद (1998)
घटना परिचय - 

एक बार खुद को, इसी मक़ाम पे पाया था 
बार बार मन में, यही ख्वाब दोहराया था. 
डरते थे कहने को तो, इसका ही सहारा था,
खुद का कुछ नहीं तो, "वजूद" का किनारा था। 

हम भी "नाना" थे और "माधुरी" का साया था,
ख्वाब बड़े हसीं थे, हमने जिन्हे अपनाया था. 
दोस्तों का साथ था, और जवानी का आलम,
साल बीते, दोस्त बिछड़े, हमको मिला बालम।

अब कह नहीं सकते, जवानी की बातें,
बाँट नहीं सकते कैसे कटी रातें। 
समझ के बचपन, जो माफ़ करे भूले,
ऐसा नहीं हमदम, जो हमको फिर क़बूले। 

                    - अमित (मीतू का)

Friday, November 29, 2019

Do not Change the world


Once upon a time, there was a king who ruled a prosperous country. One day, he went for a trip to some distant areas of his country. When he was back to his palace, he complained that his feet were very painful, because it was the first time that he went for such a long trip, and the road that he went through was very rough and stony. He then ordered his people to cover every road of the entire country with leather. 
Definitely, this would need thousands of cows skin, and would cost a huge amount of money. 
Then one of his wise servants dared himself to tell the king, “Why do you have to spend that unnecessary amount of money? Why don’t you just cut a little piece of leather to cover your feet?” 
The king was surprised, but he later agreed to his suggestion, to make a “shoe” for himself.

Moral: To make this world a happy place to live, you better change yourself and not the world.

Tuesday, November 26, 2019

प्रदूषित दिल्ली

बुरा हाल है दिल्ली का
नहीं पता कब होगा ठीक,
कम पटाके, ऑड़ और ईवन
मांगे अब, हरपु से भीख!

लगा लगा के आग पुराली में
कर डाला सब सत्यानाश,
हर साल का यही हाल है
होके रहेगा, दिल्ली का विनाश!

नया कलेंडर बना दिल्ली में
समर, विंटर और पोल्लुसन का,
अब तो फिक्स हैं वकेसन यहाँ
इन तीनों सीजन में, बच्चो का!

मास्क बटें या फ्री हो किराया
या फिर बिजली पानी फ्री,
जब दिल्ली लायक(रहने) ही नहीं तो
क्या करेंगे ले कर जी!

तब भी कोशिश करते रहते
अपने सीएम जी है महान,
कुछ भी कह ले, कुछ भी कर ले
फिर भी सब करते अपमान !!

- अमित
* हरपु:- हर हरियाणा, पु पंजाब

Polluted Delhi

Bura haal hai dilli ka
Nahi pata kab hoga thik,
Kam patake, odd aur even
Mange ab, har-pu* se bhik.

Laga laga kar aag purali me
Kar dala sab satyanash,
Har saal ka yahi haal hai
Hoke rahega dilli ka vinaash.


Naya calendar bana dilli me
Summer, winter aur pollution ka
Ab to fix hai vacation yahan
In teeno season me bachcho ka

Mask bate, ya free ho kiraya
Ya phir bijali, pani free
Jab dilli rahane layak hi nahi to
Kya karenge lekar jee

Tab bhi koshis karte rahte
Apane CM ji hai Mahaan
Kuch bhi kahle, kuch bhi karle
Phir bhi Sab karte apmaan

- Amit (Dil se)
* har- haryana, pu-punjab

Tuesday, June 18, 2019

मैं अकेला

कभी खुद से बातें करता हूँ, कभी खुद को तन्हा पाता हूँ,
ये समय अजब है जीवन का, खुद को भी समझ न आता हूँ,

कभी तन्हां जीवन लगे भला, कोई बंदिश नहीं, ना ज़िम्मेदारी
कभी लगे काटने यादें आ, सब कुछ करना, हो सर भारी,

कभी लगे उड़ जाऊ पंखा लगा, नए आकाश में दूरो मैं,
कभी लगे कट गए पंख मेरे, अब कैसे रहू अकेले मैं,

कभी पैर फैला के सोना यूँ, जैसे सारा आकाश मेरा,
कभी सोच सोच के ये रोना, तन्हा काटे बिस्तर मेरा,

कभी शोर से बच गए सोच सोच, मन में बजती है तरल तरंग ,
कभी कोई नहीं है सुनने को, किसकी मैं सुनु, खोई सारी उमंग ,

कभी ये सोचु, कोई जिद नहीं, ना कोई धमकाए अच्छा है,
पर ख़ाली घर जब काटे तो, फिर यही लगे दिल बच्चा है,

नहीं रह सकता मैं तेरे बिना, ऐ हमदम मेरे समझ ले तू,
सब छड़ीक भावनाएं है मेरी, जो सोचे रहु अकेले मैं |
बिन बच्चो के, बिन प्यार बिना, नहीं कटता जीवन मेरा है
कुछ दिन ही लगे बरस जैसे, हूँ पड़ा व्यर्थ धरती पर मैं. ||

                                          - अमित कुमार श्रीवास्तव 

Monday, March 25, 2019

मतलबी दुनियाँ...!!!!

इस छड़ीक सी दुनिया में,
जहा समय है कितना पता नहीं,
सब लोग लगे, धन खाने में,
है पता, कफ़न में जेब नहीं.

नहीं रहा रिश्ते का मोल कोई,
कोई प्यार नहीं, कोई मेल नहीं,
सब लगे है अपने अच्छे में,
कोई जिए, मरे ये फेर नहीं,

सब मानवता बस नाटक है,
अपनेपन का कोई जोर नहीं,
बस करो, भरो,  मेरा साया बनो,
प्रिये, वरना तुम मेरे प्रेम नहीं,

बस भर जाये ये पेट मेरा,
दावानल लगी है, इक्छा की,
तुम मर जाओ, तुम कट जाओ,
इस सबकी मुझको चिंता नहीं.,

मेरा मतलब बस मेरा है,
तेरा मतलब बर्दास्त नहीं,
जब तक मैं बोलू सुना करो,
तेरा सुनना मुझे रास नहीं.

है आज जमाना ऐसा ही,
सब लगे है बस अपने ही लिए,
बस माँ और बाप, दो प्राणी है,
जिनको बदले का मोह नहीं..!

    - अमित कुमार श्रीवास्तव 

Friday, March 8, 2019

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

तू माँ है, तू बहना 
तू मोती , तू गहना !
तू पत्नी, तू बेटी 
हर दुःख तू हर लेती !
तू दोस्त, तू साथी 
हर पल एक महारथी !
तू शिक्षक, तू पालक 
आजीवन संचालक  !
तू कर्ता , तू ही कर्मी 
तू ही दुर्गा, तू लक्ष्मी !
नमन है शत शत बारम्बार 
तुम्हे मुबारक आज का वार !!
  
   - अमित कुमार श्रीवास्तव

Tuesday, January 8, 2019

कोशिश


कुछ छूटा है, टूटा है, पाने की कोशिश
बेईमान दिल है, मनाने की कोशिश
क्या चाहता हू, क्या नहीं, जान जाने की कोशिश
कही बिगड़ न जाऊ, खुद को, बचाने की कोशिश
हूँ हैरान, परेशान क्यू, समझ जाने की कोशिश
कुछ करने, कुछ पाने, बनाने की कोशिश
है राब्ता इस दुनिया से गहरा मेरा, सबको ये, समझाने की कोशिश
सबको अपना बना, सबका बन जाने की कोशिश
है ख्वाबो में जो, हकीकत में अब, कर गुजर जाने की कोशिश
हूँ नाकाम कुछ इरादो, जज़बातो में, उन्हे पाने की कोशिश
इस राख़ से जीवन को, तारों सा सजाने की कोशिश
छा जाने की बुलंदी पर, सवर जाने की कोशिश
भटका बहुत हूँ, उलझा हुआ हूँ, अब तो सकुन पाने की कोशिश
बस कटे ये जीवन अपनों में अब, उन्हे अपना बनाने की कोशिश
कोशिश, कोशिश, कोशिश, सब कर, सब पा, गुजर जाने कोशिश !!

                          - अमित कुमार श्रीवास्तव

भय ही प्रबल है।

दो उल्लू एक वृक्ष पर आ कर बैठे। एक ने साँप अपने मुँह में पकड़ रखा था।  दूसरा एक चूहा पकड़ लाया था।  दोनों जैसे ही वृक्ष पर पास-पास आकर बैठे।...