प्रतिबंधता का असर
अक्सर देखा जाता है कि अपने मन से कार्य करने की आज़ादी अथवा छूट व्यक्ति को गलत राह पर अग्रसर कर देती है, पर क्या ये हमेशा ही सच होता है? ऐसा नहीं है यदि आप अपनी जिम्मेदारियों को भली भाँति जानते है। चाहे जितनी भी आज़ादी या छूट मिले वो आप को कभी भी गलत राह पर नहीं ले जायेगी।
इसका जीता जागता उदाहरण आजकल हम सबको देखने को मिल रहा है। यहाँ गलत राह का मतलब गलत कर्मो से नही अपितु समय के दुरूपयोग से है। लोगो का देर से आना , कार्यो में समय लगना, चाय, नाश्ता, खाना तथा घूमना इत्यादि करने को सिर्फ समय का दुरुप्रयोग ही क्यो मानते है, यही पर यदि सकारात्मक सोच रखी जाये तो... ।
कार्यालय देर से आने की वजह, कार्य की अधिकता के कारण देर से जाना भी होता है, जिससे आपके दैनिक कार्यो में व्यव्धान पड़ता है अतः अगर आप अपने दैनिक कार्य को भली भाँती नहीं करेंगे तो पूरा दिन अपने कार्यालय में मन कैसे लगा पाएंगे? अतः छूटे कार्यो को खत्म कर पूरी तरह से अपने आप को कार्यालय के लिए समर्पित कर के आने में थोडा समय लग सकता है।
कार्यो में समय लगना, इसका यह अभिप्राय नहीं कि समय को तवज्जो न देना, इसका मतलब ये भी नहीं कि जल्दबाज़ी में कार्य ही गलत हो जाये, थोडा सोच विचार, आपसी राय भी तो जरुरी है कार्यो के सम्पादन के लिए? और इसमे हमेशा समय अपर्याप्त रहता है।
चाय, नाश्ता, खाना तथा घूमने से तात्पर्य थोडा आराम से तथा माहौल बदल कर कार्य के प्रति समर्पण से है, जितना ज्यादा आप अपने मन को शांत तथा ताजा रखेंगे, आप का उतना ही ज्यादा मन कार्य में लगेगा।
इसका जीता जागता उदाहरण आजकल हम सबको देखने को मिल रहा है। यहाँ गलत राह का मतलब गलत कर्मो से नही अपितु समय के दुरूपयोग से है। लोगो का देर से आना , कार्यो में समय लगना, चाय, नाश्ता, खाना तथा घूमना इत्यादि करने को सिर्फ समय का दुरुप्रयोग ही क्यो मानते है, यही पर यदि सकारात्मक सोच रखी जाये तो... ।
कार्यालय देर से आने की वजह, कार्य की अधिकता के कारण देर से जाना भी होता है, जिससे आपके दैनिक कार्यो में व्यव्धान पड़ता है अतः अगर आप अपने दैनिक कार्य को भली भाँती नहीं करेंगे तो पूरा दिन अपने कार्यालय में मन कैसे लगा पाएंगे? अतः छूटे कार्यो को खत्म कर पूरी तरह से अपने आप को कार्यालय के लिए समर्पित कर के आने में थोडा समय लग सकता है।
कार्यो में समय लगना, इसका यह अभिप्राय नहीं कि समय को तवज्जो न देना, इसका मतलब ये भी नहीं कि जल्दबाज़ी में कार्य ही गलत हो जाये, थोडा सोच विचार, आपसी राय भी तो जरुरी है कार्यो के सम्पादन के लिए? और इसमे हमेशा समय अपर्याप्त रहता है।
चाय, नाश्ता, खाना तथा घूमने से तात्पर्य थोडा आराम से तथा माहौल बदल कर कार्य के प्रति समर्पण से है, जितना ज्यादा आप अपने मन को शांत तथा ताजा रखेंगे, आप का उतना ही ज्यादा मन कार्य में लगेगा।
पर आजकल जैसे ही नियमो ने लगाम खींची, सभी अकस्मात् ही समय के बंधन में बंध गए है। भले ही 9:30 पर पार्किंग भरी है, हॉल में सब अपने अपने कार्यो में व्यस्त है, बाहर घूमने वालो की भीड़ खत्म है, सभी के किए कार्यो की तालिका हर समय अंतराल के लिए भरी हुई है। पर क्या सब मन से संतुष्ठ है?, इस बंधन के कारण अपने आप को कार्य में एकाग्रचित कर पा रहे है? ना चाहते हुए भी ध्यान कार्य तालिका पर है, जिससे कार्यो में बाधा भी पड रही है, मन स्वच्छंद विचारो से हीन हो गया है। ऐसे में क्या रिसर्च और डेवलपमेंट का कार्य हो सकता है? आप खुद ही विचार करें।
अच्छा है हम प्रगति पर है, जो सफलता हमको को २ साल मे मिलती वो अब ६ महीने में ही मिलने के आसार नजर आ रहे है, लोगो कि इस व्यस्तता को देखकर ऐसा मैनेजमेंट सोच सकता है, पर क्या ये सच है? जल्दबाजी में कार्य होंगे, निसंदेह ही कुछ जल्दी भी होंगे, पर क्या सब सही और अपने उद्देश्य को पूरा भी करेंगे? नही.…… गलतियाँ होंगी और उनको सुधारने में औसत से ज्यादा समय लग जायेगा। जिसका ताज़ा उदाहरण हम सब जानते है, कि एक नई वेबसाइट के साथ क्या हुआ, इस चलती सामयिक पाबंदी के कारण ....... !!!!
बाकी अंत में इतना ही कह सकते है कि BOSS IS ALWAYS RIGHT????
बाकी अंत में इतना ही कह सकते है कि BOSS IS ALWAYS RIGHT????
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