अकेलापन
आज कल याद कुछ और रहता नहीं, एक बस आपकी याद आने के बाद।
याद आने से पहले चले आइये, और फिर जाइये जान जाने के बाद।
बहुत पहले किसी हिंदी फिल्म में सुना था ये गाना, जो की आज कल खुद मेरी जुबान पे चढ़ा हुआ है. शायद यही हाल होता है अगर कोई प्रिय आपसे ज्यादा दिन तक दूर रहे। दिन अचानक ही कितने बड़े लगने लगते है, और रात अकेली और डरावनी। समय तो जैसे पहाड़ की माफ़िक फ़ैल के आगे खड़ा हो जाता है, जिसके आर पार कुछ और दिखाई ही नहीं देता।
इस दिल की स्थिति कोई और समझ ही नहीं सकता, जब तक ऐसा कुछ उसके खुद के साथ घटित न हुआ हो। जीवन भर व्यक्ति प्यार की तलाश में ही भटकता रहता है। और जब ये ही प्यार झोली भर के आप के पास हो पर आपके समीप/निकट ना हो तो आप भटक भी नहीं सकते और अपने प्यार को पा भी नहीं सकते, बहुत ही विकट परिस्थिति हो जाती है कभी कभी।
फ़ोन भी क्या कमाल का आविष्कार है, पल भर ही सही पर मीलों की दूरिया छड़ भर के लिए लुप्त हो जाती है। और आजकल तो कई ऐसे माध्यम है दूरिया मिटाने के, फेसबुक/व्हाट्स-एप/वी-चैट/३ जी चैट जो तुरंत आपको आपके प्यार से कनेक्ट कर देते है।
पर क्या ये छड़ भर के माध्यम से सच में दूरिया घट जाती है? क्या याद आने का सिलसिला थम जाता है? क्या मन को वास्तव में संतोष की प्राप्ति हो जाती है? दिल जोर जोर धड़कना बंद कर देता है?
नहीं …………… कभी नहीं।
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