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Sunday, March 18, 2007

तेरी याद.............


मत पूछो आलम हमारे दिल की बे-बसी का

क़यामत की भीड़ है आस पास,दिल मैं मगर तन्हाई है

यूँ दिल के आँगन मे न उसकी याद की आहत हुई

जैसे दूर किसी वादी मे, बजती कोई शेहनाई है .

खा कर धोखा ख़ुद अपनी ही तक़दीर के हाथों हम

क्या इल्ज़ाम दे किसी को हम , हमारी किस्मत ही हरजाई है

तेरे लौट आने की राह ढेखना बन गई है मेरी आदत

ख़ुशी तो नही किस्मत मे हाँ मगर , ग़म से आशनाई है

ये भी नही की ख़ाब मे अगर तुझ को छू लूं

तू तो नही है आया पर याद तेरी ,हम से मिलने आई है.....!!

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