मत पूछो आलम हमारे दिल की बे-बसी का
क़यामत की भीड़ है आस पास,दिल मैं मगर तन्हाई है
यूँ दिल के आँगन मे न उसकी याद की आहत हुई
जैसे दूर किसी वादी मे, बजती कोई शेहनाई है .
खा कर धोखा ख़ुद अपनी ही तक़दीर के हाथों हम
क्या इल्ज़ाम दे किसी को हम , हमारी किस्मत ही हरजाई है
तेरे लौट आने की राह ढेखना बन गई है मेरी आदत
ख़ुशी तो नही किस्मत मे हाँ मगर , ग़म से आशनाई है
ये भी नही की ख़ाब मे अगर तुझ को छू लूं
तू तो नही है आया पर याद तेरी ,हम से मिलने आई है.....!!
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