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Wednesday, January 27, 2016

I m too much Tired....!!!!


Thak Gaya Hu Teri Naukri Se Ae Jindagi
Munaasib Hoga Tu Mera Hisab Kar De..!

Dosto Se Bichad Kar Ye Hakikat Khuli
Beshak Kamine The Par Rounak Unhi Se Thi..!
Bhari Jeb Ne Duniya Ki Pehchan Karwai
Khali Jeb Ne Insaano Ki..!

Samjha nahi kisi ne humko
Sabko apane sapane pyare
un sapno ko pura kanme me
chahe hum apana sab haare..!

Jab Paise Lage Kamane to Samaj Mei Aaya
shouk To Maa Baap Ke Paiso Se Pure Hote The
Apne Paiso Se to Sirf Jarurate Puri Hoti Hai..!

kuch log hume apana kahate
kuch log paraya kahate hai
jiski jaisi jarurat hai
hum usko waise dikhate hai..!

Kuch Sahi To Kuch Kharab Kehte Hai
Log Hme Bigda Hua Nawaab Kehte Hai
Hum To  Badnaam Hue Kuch Is Kadar
Ki Pani Bhi Piye To Log Sharaab Kehte Hai...!

Samjha Samjha is duniya ko
ab hum to hare buri tarah
lagata hai sab kuch chhod chale
us mast bifikre hathi ki tarah..!

Tuesday, January 12, 2016

जीवन एक संघर्ष

बाज लगभग ७० वर्ष जीता है, परन्तु अपने जीवन के ४०वें वर्ष में आते आते उसे एक महत्वपूर्ण निर्णय लेना पड़ता है।
उस अवस्था में उसके शरीर के तीन प्रमुख अंग निष्प्रभावी होने लगते हैं-
पंजे लम्बे और लचीले हो जाते है व शिकार पर पकड़ बनाने में अक्षम होने लगते हैं।
चोंच आगे की ओर मुड़ जाती है और भोजन निकालने में व्यवधान उत्पन्न करने लगती है।
पंख भारी हो जाते हैं, और सीने से चिपकने के कारण पूरे खुल नहीं पाते हैं, उड़ानें सीमित कर देते हैं।
भोजन ढूँढ़ना, भोजन पकड़ना और भोजन खाना, तीनों प्रक्रियायें अपनी धार खोने लगती हैं।
उसके पास तीन ही विकल्प बचते हैं, या तो देह त्याग दे, या अपनी प्रवृत्ति छोड़ गिद्ध की तरह त्यक्त भोजन पर निर्वाह करे...
या फिर स्वयं को पुनर्स्थापित करे, आकाश के निर्द्वन्द्व एकाधिपति के रूप में।
जहाँ पहले दो विकल्प सरल और त्वरित हैं, वहीं तीसरा अत्यन्त पीड़ादायी और लम्बा।
बाज पीड़ा चुनता है और स्वयं को पुनर्स्थापित करता है।
वह किसी ऊँचे पहाड़ पर जाता है,
एकान्त में अपना घोंसला बनाता है, और तब प्रारम्भ करता है पूरी प्रक्रिया।
सबसे पहले वह अपनी चोंच चट्टान पर मार मार कर तोड़ देता है..
अपनी चोंच तोड़ने से अधिक पीड़ादायक कुछ भी नहीं पक्षीराज के लिये। तब वह प्रतीक्षा करता है चोंच के पुनः उग आने की।
उसके बाद वह अपने पंजे भी उसी प्रकार तोड़ देता है और प्रतीक्षा करता है पंजों के पुनः उग आने की।
नये चोंच और पंजे आने के बाद वह अपने भारी पंखों को एक एक कर नोंच कर निकालता है और प्रतीक्षा करता पंखों के पुनः उग आने की।
१५० दिन की पीड़ा और प्रतीक्षा...
और तब उसे मिलती है वही भव्य और ऊँची उड़ान, पहले जैसी नयी।
इस पुनर्स्थापना के बाद वह ३० साल और जीता है, ऊर्जा, सम्मान और गरिमा के साथ।
प्रकृति हमें सिखाने बैठी है-
पंजे पकड़ के प्रतीक हैं, चोंच सक्रियता की, और पंख कल्पना को स्थापित करते हैं।
इच्छा परिस्थितियों पर नियन्त्रण बनाये रखने की,
सक्रियता स्वयं के अस्तित्व की गरिमा बनाये रखने की,कल्पना जीवन में कुछ नयापन बनाये रखने की।
इच्छा, सक्रियता और कल्पना, तीनों के तीनों निर्बल पड़ने लगते हैं, हममें भी, चालीस तक आते आते।
हमारा व्यक्तित्व ही ढीला पड़ने लगता है, अर्धजीवन में ही जीवन समाप्तप्राय सा लगने लगता है, उत्साह, आकांक्षा, ऊर्जा अधोगामी हो जाते हैं।
हमारे पास भी कई विकल्प होते हैं- कुछ सरल और त्वरित, कुछ पीड़ादायी।
हमें भी अपने जीवन के विवशता भरे अतिलचीलेपन को त्याग कर नियन्त्रण दिखाना होगा-बाज के पंजों की तरह।
हमें भी आलस्य उत्पन्न करने वाली वक्र मानसिकता को त्याग कर ऊर्जस्वित सक्रियता दिखानी होगी-बाज की चोंच की तरह।
हमें भी भूतकाल में जकड़े अस्तित्व के भारीपन को त्याग कर कल्पना की उन्मुक्त उड़ाने भरनी होंगी-बाज के पंखों की तरह।
१५० दिन न सही, तो एक माह ही बिताया जाये, स्वयं को पुनर्स्थापित करने में। 
जो शरीर और मन से चिपका हुआ है, उसे तोड़ने और नोंचने में पीड़ा तो होगी ही,
बाज तब उड़ानें भरने को तैयार होंगे, इस बार उड़ानें और ऊँची होंगी, अनुभवी होंगी, अनन्तगामी होंगी।I

Monday, December 21, 2015

Why We Shout In Anger - A Short Story

“Why We Shout In Anger”

A Hindu saint who was visiting river Ganges to take bath found a group of family members on the banks, shouting in anger at each other.
He turned to his disciples smiled ‘n asked. ‘Why do people shout in anger shout at each other?’
Disciples thought for a while, one of them said, ‘Because we lose our calm, we shout.’ ‘But, why should you shout when the other person is just next to you? You can as well tell him what you have to say in a soft manner.’ asked the saint.
Disciples gave some other answers but none satisfied the other disciples. Finally the saint explained, ‘When two people are angry at each other, their hearts distance a lot. To cover that distance they must shout to be able to hear each other.
The angrier they are, the stronger they will have to shout to hear each other to cover that great distance.
What happens when two people fall in love? They don’t shout at each other but talk softly, because their hearts are very close. The distance between them is either non-existent or very small…’ The saint continued, ‘When they love each other even more, what happens? They do not speak, only whisper ‘n they get even closer to each other in their love.

Finally they even need not whisper, they only look at each other ‘n that’s all. That is how close two people are when they love each other. ‘He looked at his disciples ‘n said. ‘So when you argue do not let your hearts get distant, Do not say words that distance each other more, Or else there will come a day when the distance is so great that you will not find the path to return.’

Wednesday, October 14, 2015

मैं......

खवाहिश  नही  मुझे  मशहुर  होने  की।
आप  मुझे  पहचानते  हो  बस  इतना  ही  काफी  है।


अच्छे  ने  अच्छा  और  बुरे  ने  बुरा  जाना  मुझे।
क्यों  की  जीसकी  जीतनी  जरुरत  थी  उसने  उतना  ही  पहचाना  मुझे।


ज़िन्दगी  का  फ़लसफ़ा  भी   कितना  अजीब  है, 
शामें  कटती  नहीं,  और  साल  गुज़रते  चले  जा  रहे  हैं....!!


एक  अजीब  सी  दौड़  है  ये  ज़िन्दगी, 
जीत  जाओ  तो  कई  अपने  पीछे  छूट  जाते  हैं,
और  हार  जाओ  तो  अपने  ही  पीछे  छोड़  जाते  हैं।


बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर...
क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है..

मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा,
चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना ।।

ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ऐब नहीं है पर सच कहता हूँ मुझमे कोई फरेब नहीं है

जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन क्यूंकि एक मुद्दत से मैंने
न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले .!!.


एक घड़ी ख़रीदकर हाथ मे क्या बाँध ली..
वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे..!!

सोचा था घर बना कर बैठुंगा सुकून से..
पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला !!!

सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब....
बचपन वाला 'इतवार' अब नहीं आता |

जीवन की भाग-दौड़ में -
क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है ?
हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है..


एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम 
और आज कई बार
बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है..

कितने दूर निकल गए, रिश्तो को निभाते निभाते..
खुद को खो दिया हमने, अपनों को पाते पाते..
लोग कहते है हम मुस्कुराते बहोत है, और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते..

"खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ,
लापरवाह हूँ फिर भी सबकी परवाह करता हूँ..

मालूम है कोई मोल नहीं मेरा, फिर भी,
कुछ अनमोल लोगो से रिश्ता रखता हूँ...!

Monday, September 21, 2015

The Name which means a Lot for me...

Name: Aavya

Meaning : First rays  of Sun, Gift of God 

Numerology : 5

Syllables : 2.5

Religion : Hindu

Rashi : Mesha (A, L, E, I, O)

Nakshatra : Krithika (A, Ee, U, EA, I, E)


Name: Aadhya

Meaning :First power , Name of Goddess Durga.

Syllables :2.5

Numerology :22

Religion :Hindu

Rashi :Mesha (A, L, E, I, O)

Nakshatra :Krithika (A, Ee, U, EA, I, E)


Wednesday, September 16, 2015

Tere Ishq Me....!!!!!!

कभी अल्फ़ाज़ भूल जाउ, कभी ख़याल भूल जाउ 
तुझे इस कदर चाहू के अपनी साँस भूल जाउ 
उठ कर तेरे पास से जो मैं चल दू, तो जाते हुए खुद को तेरे पास भूल जाउ 

अब उनकी मोहब्बत में ये आलम आ गया, 

ठंडी हवा का झोंका भी हमे जला गया, 
कहता है आप यहा तरसते ही रह गये, 
मैं तुम्हारे सनम को छु कर आ गया 

साथ अगर दोगे तो मुस्कराएँगे ज़रूर, 
प्यार अगर दिल से करोगे तो निभाएँगे ज़रूर 
राह मे कितने भी काँटे क्यू ना हो, 
आवाज़ अगर दिल से दोगे तो आएँगे ज़रूर. 

मेरी कलम से लफ्ज़ खो गये शायद, आज वो भी बेवफा हो गये शायद, 
जब नींद खुली तो पलकों मे पानी था,  मेरे ख्वाब मुझ पे ही रो गये शायद 

मुझे भी अब नींद की तलब नहीं रही,  अब रातों को जागना अच्छा लगता हैं, 
मुझे न्ही मालूम वो मेरी किस्मत मे हैं की नही,  मगर उसे खुदा से माँगना अच्छा ल्गता है. 

हर शख्स से उलफत का इक़रार नही होता, 
हर चेहरे से दिल को कभी प्यार नही होता 
जो रूह को छ्छू जाए, जो दिल मे उतार जाए 
उसी से इश्क़ का लफ़्ज़ों में इज़हार नही होता.. 

सासे थम सी जाती हैं पर जान नही जाती, 
दर्द होता हैं पर आवाज़ नहीं आती, 
अजीब से लोग हैं इस दुनिया में,
कोई भूल नही पता तो किसी को याद नही आती 

क़ातिल तेरी अदाओं ने लूटा हैं, 
मुझे तेरी जफ़ाओं ने लूटा हैं, 
शौक नही था मुझे मर मिटने का 
साकी नशीली निगाहों ने लूटा हैं, 
बिखरी हैं खुश्बू तेरी साँसों की, 
मुझ को तो इन हवाओं ने लूटा है, 
चैन से भला कैसे सो सकता हूँ, 
रातों को तेरे खवाबों ने लूटा है 
बहुत खूब हैं तेरे हुस्न की आडया, 
चाँदनी को तूने चंदा से लूटा है.

 वो इनकार करते हैं इकरार के लिए, 
नफ़रत भी करते हैं तो प्यार के लिए, 
उल्टी चाल चलते है ये इश्क़ करने वाले 
आँखें बंद करते हैं दीदार के लिए 

खुदा बिना जाने केसे रिश्ते बना देता हैं 
अंजाने लोगो को दिल में बसा देता हैं, 
जिन्हे हम कभी जानते भी ना थे, 
उन्हे जान से भी ज़्यादा कीमती बना देता है 

सब भूल जाता हू आपके सिवा,  ये क्या मुझे हुआ हैं 
क्या इसी एहसास को दुनिया ने , प्यार का नाम दिया हैं. 

क्या खोया क्या पाया....

जिंदगी की उथल पुथल, उहा पोह में मैंने क्या खोया क्या पाया का हिसाब रखना तो थोड़ा मुश्क़िल है पर नामुमकिन नहीं, आज बस बैठे बैठे मन में विचार उठा की हिसाब लगाया जाये किसकी जीत हुई? 
खोने की या पाने की । .... 
तो जीवन के आरम्भ से ही गिनती शुरू करते है। पैदा हुआ तो उससे पहले ही दादी को खो दिया पर ईश्वर ने बहुत प्यारी नानी दी जिन्होंने दादी की भी कमी कभी खलने नहीं दी। 
थोड़ा बड़ा हुआ तो अपना प्यारा गाँव खोया, पापा की नौकरी के कारण पर वही बदले में सारी सुख सुविधाओ से सुसज्जित शहर मिला, जिसने अच्छी तालीम और मॉर्डन संस्कार दिए। 
फिर पढाई में उन्नति और बेहतर भविष्य के लिए स्कूल बदलने में दोस्तों को खोया पर नए स्कूलों में और अधिक दोस्तों को पाया भी।
पापा की नौकरी और किराये के मकान में रहने की कारण, बहुत से मोहल्ले बदले, दोस्त खोये पडोसी खोये पर फिर वही नये मिले भी।
भविष्य बनाने का समय आया, अब जब की मैं अपने परिवार को एक दिशा दे सकता था तो, एक अनहोनी घटना में, पापा के एक्सीडेंट के कारण परिवार की आय बंद होने से, महत्वपूर्ण जीवन के २ सालो को खो दिया, अब इसका पूरक कुछ नहीं था।     
बमुश्किल देर से इंजीनियरिंग कॉलेज में गया तो अपने पापा को ही खो दिया, जिनके होने से ही हमारा वजूद था, उनके बिना हम जीने की कल्पना भी नहीं कर सकते थे, पूरा भविष्य अंधकारमय हो गया, आय के एकमात्र स्रोत मेरे पापा इस दुनिया से चले गए थे मेरे जीवन का सबसे बड़ा खोना मेरी अल्पायु में ही ईश्वर ने मेरे नसीब में लिख दिया था, अब इस खोने का पूरक भी मिलना मुश्किल था पर वही मैंने ३ नए स्तम्भो को पाया जिनके सहारे मैंने उठना सीखा, सर्वोपरि मेरे मामा, मेरे नाना और मेरे ताउजी, जिन्होंने न केवल धन से अपितु अपने प्यार दुलार, देखभाल और मेरी जिम्मेदारियों को अपना बना के मुझे हर तरफ से मुक्त किया की मैं अपना और साथ ही साथ अपने परिवार का भविष्य बना सकु।
कॉलेज में दोस्त तो मिले ही, साथ साथ दोस्तों में नए परिवार मिले, जिन्होंने ४ सालों तक मुझे टूटने और बिखरने नहीं दिया, हर हाल में मेरा साथ दिया और उन्नति के लिए हमेशा प्रोत्साहित किया. पाने की लिस्ट बहुत लम्बी है यहाँ जहा मैं खाली हाथ पहुंचा और झोली भर के वापस आया ज्ञान की, दोस्तों की, परिवार की, सुनहरे भविष्य की, अपनी जिम्मेदारियों को पूरा कर लेने के विश्वास की। बस खोया तो २ अपनों का विश्वास, शायद हमारी सोच में अंतर था जो आखरी वक़्त में मेल नहीं खाई फिर समय नहीं मिला सुधारने का। 
फिर सुनहरे भविष्य की कामना मुझे नए नए शहरों में भटकारी रही, नए लोग मिलते रहे पुराने बिछड़ते रहे. रूड़की शहर ने मुझे एक नया परिवार दिया, कुछ कर गुजरने का आत्म बल दिया, उत्थान की पहली पायदान पे चढ़ना सिखाया, बदले में खोया अपना बचपन, वो लड़कपन भरी मासूमियत, वो साफ़ और सच्चा हृदय, जो की अब मजबूत हो चूका था समय के थपेड़ो के साथ, ठोकर खाते खाते।
दिल्ली दिलवालो की, सौ टका सत्य वचन, जीवन के इस पायदान पे मुझे दिल्ली में एक स्थायी स्थान मिला, जिसने ना सिर्फ मेरी कैरियर रूपी खोज को आयाम दिया, अपितु मेरी जिम्मेदारियों को भी पूर्ण विराम लगाने में मेरी भरपूर सहायता की। खोया पाया की लिस्ट यहाँ थोड़ी लम्बी है, क्यूकी पिछले ११ बरसो का लेखा जोखा तैयार करना पढ़ेगा। 
यहाँ सबसे बड़ी उपलब्थि मेरी, मेरे परिवार को अपने पास लाने की रही, साथ ही मैं अपनी उन जिम्मेदारियों से उरिड हुआ जो मेरे पापा मुझ पर छोड़ गए थे, माँ को मैंने वो उचित स्थान दिलवाया जिसकी वो हमेशा से हकदार थी, अपना खुद का घर पाया, परिवार पाया, दो प्यारी प्यारी बेटियों का प्यार पाया। बहुत सारे नए रिश्तो को सौगात पाई, जीवन में सुदृढ़ता आई। 
खोया, हाँ इन सब को पाने में, इन ११ सालो में मैंने बहुत कुछ खोया भी, मैंने अपनो को खोया, अपनों का प्यार, विश्वास को खोया, अपनो का साथ भी खोया।  मेरे नाना इस संसार को, हम सबको छोड़ कर चले गए, मेरे ताउजी अपनी पारिवारिक परेशानियों में फँस कर हमसे दूर हो गये. जीवन की तेज़ रफ़्तार में कुछ बिछोह ऐसे भी है की उसमे कौन सही है कौन गलत का विचार करने का समय नहीं, पर हा फिर भी संतुस्ती है की मेरी तरफ से मैंने कोई कमी कही होने नहीं दी, अपने चादर से ज्यादा ही पैर फैला के जिम्मेदारियों का वहन किया।
अंततः यही सत्य है "जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबहो शाम", "जिंदगी के सफर में गुजर जाते है जो मुकाम, वो फिर नहीं आते", "जिंदगी कैसी है पहेली हाये, कभी तो हसाये कभी ये रुलाये", "आदमी मुशाफिर है, आता है जाता, आते जाते रस्ते में, यादें छोड़ जाता है।"
जो पाया वो साथ है, जो खोया वो यादो में मेरे साथ है और हमेशा साथ रहेगा..... 

भय ही प्रबल है।

दो उल्लू एक वृक्ष पर आ कर बैठे। एक ने साँप अपने मुँह में पकड़ रखा था।  दूसरा एक चूहा पकड़ लाया था।  दोनों जैसे ही वृक्ष पर पास-पास आकर बैठे।...