कुछ पुरानी यादें जवां हुई, कुछ खुद से बात हुई
वो लम्हे आंखों में ऐसे सज गए जैसे
कल ही मिले थे आज बिछड़ गए कैसे
वो बचपन के पल, वो बाते भरी नादानी
कितने हसीन दिन थे जो खो गए आते ही जवानी
लिख जाते थे हर एक बात अपनी डायरी में हम
ऐसे उलझे, हुए गुम, अपना मिलना ही हुआ कम
समय बहुत था पास, जीवन रंगीन, निराला था
ये आलम बेबसी का अब, ना जाने क्यू आना था
काश वो दिन लड़कपन के कोई लौटा देता
मान उसे खुदा मैं, उसपर खुद को लूटा देता
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