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Sunday, November 29, 2020

कोई अपने घर में दिया यूँ जलाये

कोई अपने घर में दिया यूँ जलाये
कि उसका उजाला मेरे घर में आये || 

लपेटे है मुझको उदासी लता सी
उदासी है छायी हृदय पर घटा सी
कोई अपने घर इस तरह गुनगुनाये
कि आवाज उसकी मेरे घर में आये || 

नहीं ज्ञात मुझको कि मधुमास क्या है
नहीं ज्ञात है पुष्प की बास क्या है
कोई फूल जूड़े में  ऐसे  सजाये
कि खुशबु हवा से मेरे घर में आये || 

अकेला पड़ा हूँ मै छोटे से  घर में
हूँ अजनबी इस  अनोखे शहर में
कोई अपना घर इस तरह भूल जाये
कि अपना समझ कर  मेरे घर में आये  ||

कोई अपने घर में दिया यु जलाये.......

Monday, June 8, 2020

कॅरोना दोहे

जब भी बाहर जाइये, रखिये सेनिटाइजर साथ,
गलती से कुछ छू गया, तुरंत धोइये हाथ।

वर्क फ्रॉम होम की रीत है, क्यों निकले तू रोड़
जहाँ भीड़ को देखिए, ले कदम को मोड़।

बाहर जाना जो पड़े, मजबूरी को ठान
रखिये सुरक्छा स्वयं की, घर आ के स्नान।

हाथ मे हाथ न राखिये, बढ़े रोग से रोग
दो गज़ दूरी होने से ,रहे सुरक्छित लोग।

मुख पर मास्क लगाई के, हाथो में दस्ताने
रख जेब मे सेनिटाइजर, शान चले मस्ताने।

हिंदुस्तानी प्रथा है, उठे नमस्कार में हाथ
कॅरोना जो छू गया, कोई न देगा साथ।

बोलन को अभी रोक है, चुमन को अभिशाप
नैनन से चर्चा करो, गले मिलायन पाप।

वर्क फ्रॉम होम में चचा है, चाची ऑन द ज़ूम
ऑनलाइन क्लास में बच्चे है, रहा कॅरोना झूम।

ऑनलाइन सब चले है, ऑफलाइन सब ठप्प
मिलना हो तो किससे मिले, किससे करे अब गप्प।

गूगल मीटिंग हो रही, ज़ूम क्लास है ऑन
टीम व्यूअर पर ऑफिस है, मोबाइल पर कान।

बाहर कॅरोना घूम रहा, हम सब घर मे बन्द
दिन पर दिन बीते पड़े, काम धाम सब मन्द।

Thursday, May 21, 2020

Corona Yug (कोरोना युग)

ये कैसा समय तूने, बनाया ओ खुदा
घर बैठे हर इंसान, हो इंसानो से जुदा।
यीशु तेरी महिमा भी, अब काम नही आई
21 दिन क्या कम थे, जो और बढ़ गई जुदाई।
डॉक्टर भी लाचार है, सब बैठे राम भरोसे
अमीर तो सब बच गए, गरीबो को कौन परोसे।
भगवान बैठा तू कहाँ, क्यू लीला नही दिखता
छूट रहा है धैर्य अब, यूँ तन्हा रहा नही जाता।
नानक भरोसे देश है अब, मोदी भरोसे हम
ये बेचैनी, ये लाचारी, को कैसे करे हम कम।
कोई तो करो उपाय विष्णु, कोई तो रूप धरो
नही तो हे शिव, विष भांति कोरोना को गले मे भरो।
राधे बोलो तुम ही सही, शायद सुन ले कृष्णा
अब हम सहने में सक्छम नही, ये बढ़ती हुई तृष्ना।
नही सुन सके कोई तो, बस कर दो इतना उपकार
मंदिर, मस्जिद, गिरजा, द्वारे  खुलवा दो, हम कर लेंगे दरकार।
बस इतनी सी है अरज मेरी, सुन लो हे कृपा निधान
सब स्वस्थ रहे, फिर काम पे चले, दे दो हमें वरदान।

              
                        - प्रार्थी (अमित कुमार श्रीवास्तव) 


First Published Poem "Corona Yug" on Youtube - https://www.youtube.com/watch?v=Tr9j3T1dx9o

Self composed Poem, its recitation and picture composition in the form of Prayer to All GOD, related to each and every community and groups in this pandemic of Corona Virus (CoVID19) to make world free from this disease soon, more suffering and loosing is unbearable now. Everyone stuck in their 12x12 room and loosing everything day by day. Just a way to show my ability and talent to this world. Its my first video so encourage me with your likes and valuable comments and do subscribe to follow and listen me more in coming days.... Thanks - Amit Kumar Shrivastava

Wednesday, February 26, 2020

शिक्षा तू भी काम न आई....

क्या शिक्षित क्या अशिक्षित आज सभी एक ही कतार में लगें है.  सुना था शिक्षा बहुत से अंतर पैदा कर देती है सोच में समझ में और रोज़ मर्रा के कामो के करने के तरीके में, पर जैसे खाना, पीना या निष्कासन नहीं बदला जा सकता, वैसे ही संगती के असर को भी नहीं बदला जा सकता, यहाँ शिक्षा तू भी काम नहीं आती. मनुष्य इतना असहाय हो जाता है की संगती का प्रभुत्व उसे उसकी समझ से ऊपर उठने नहीं देता. गलत सही का भेद भुला कर मनुष्य अमानवीय कर्मो और आसुरी प्रवृत्ति की ओर अग्रसर हो जाता है. भेद भाव, अमीर गरीब, हिंदू मुसलमान, आदमी औरत, काला गोरा, आप भाजपा की दुहाई देने लगता है, अपनी अपनी राय बना आपस में ही लड़ने लगता है, अपना अच्छा और दूसरे का बुरा उसे खूब आकर्षित करता है. यही काम अगर अनपढ़ करे तो हम एक बार को नासमझ समझ कर पचा सकते है पर अगर पढ़ा लिखा, अनुभवी, विद्वान पुरुष यह कृत्य करे तो हम सोचने पे मजबूर हो जाते है की                    - शिक्षा तू भी काम न आई....... 


Saturday, December 14, 2019

Summer Vacation

Wo mama ka ghar, wo garmi ki chhuttiya
Wo maigi, wo mango, wo pant khol chicken khana
Wo amrud ke ped, wo nana ka gussa
Wo nani ki lori, wo mami ka dular
Wo mama ka padhana, wo mausi ka pyar
Wo badapan ka ahsaa, wo chhoto se ladna aur mar.
Bahut yaad aate hai bachapan ke din
Jab sochate hai akele, bhai bahano ke bin

भय ही प्रबल है।

दो उल्लू एक वृक्ष पर आ कर बैठे। एक ने साँप अपने मुँह में पकड़ रखा था।  दूसरा एक चूहा पकड़ लाया था।  दोनों जैसे ही वृक्ष पर पास-पास आकर बैठे।...