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Thursday, May 21, 2020

Corona Yug (कोरोना युग)

ये कैसा समय तूने, बनाया ओ खुदा
घर बैठे हर इंसान, हो इंसानो से जुदा।
यीशु तेरी महिमा भी, अब काम नही आई
21 दिन क्या कम थे, जो और बढ़ गई जुदाई।
डॉक्टर भी लाचार है, सब बैठे राम भरोसे
अमीर तो सब बच गए, गरीबो को कौन परोसे।
भगवान बैठा तू कहाँ, क्यू लीला नही दिखता
छूट रहा है धैर्य अब, यूँ तन्हा रहा नही जाता।
नानक भरोसे देश है अब, मोदी भरोसे हम
ये बेचैनी, ये लाचारी, को कैसे करे हम कम।
कोई तो करो उपाय विष्णु, कोई तो रूप धरो
नही तो हे शिव, विष भांति कोरोना को गले मे भरो।
राधे बोलो तुम ही सही, शायद सुन ले कृष्णा
अब हम सहने में सक्छम नही, ये बढ़ती हुई तृष्ना।
नही सुन सके कोई तो, बस कर दो इतना उपकार
मंदिर, मस्जिद, गिरजा, द्वारे  खुलवा दो, हम कर लेंगे दरकार।
बस इतनी सी है अरज मेरी, सुन लो हे कृपा निधान
सब स्वस्थ रहे, फिर काम पे चले, दे दो हमें वरदान।

              
                        - प्रार्थी (अमित कुमार श्रीवास्तव) 


First Published Poem "Corona Yug" on Youtube - https://www.youtube.com/watch?v=Tr9j3T1dx9o

Self composed Poem, its recitation and picture composition in the form of Prayer to All GOD, related to each and every community and groups in this pandemic of Corona Virus (CoVID19) to make world free from this disease soon, more suffering and loosing is unbearable now. Everyone stuck in their 12x12 room and loosing everything day by day. Just a way to show my ability and talent to this world. Its my first video so encourage me with your likes and valuable comments and do subscribe to follow and listen me more in coming days.... Thanks - Amit Kumar Shrivastava

Wednesday, February 26, 2020

शिक्षा तू भी काम न आई....

क्या शिक्षित क्या अशिक्षित आज सभी एक ही कतार में लगें है.  सुना था शिक्षा बहुत से अंतर पैदा कर देती है सोच में समझ में और रोज़ मर्रा के कामो के करने के तरीके में, पर जैसे खाना, पीना या निष्कासन नहीं बदला जा सकता, वैसे ही संगती के असर को भी नहीं बदला जा सकता, यहाँ शिक्षा तू भी काम नहीं आती. मनुष्य इतना असहाय हो जाता है की संगती का प्रभुत्व उसे उसकी समझ से ऊपर उठने नहीं देता. गलत सही का भेद भुला कर मनुष्य अमानवीय कर्मो और आसुरी प्रवृत्ति की ओर अग्रसर हो जाता है. भेद भाव, अमीर गरीब, हिंदू मुसलमान, आदमी औरत, काला गोरा, आप भाजपा की दुहाई देने लगता है, अपनी अपनी राय बना आपस में ही लड़ने लगता है, अपना अच्छा और दूसरे का बुरा उसे खूब आकर्षित करता है. यही काम अगर अनपढ़ करे तो हम एक बार को नासमझ समझ कर पचा सकते है पर अगर पढ़ा लिखा, अनुभवी, विद्वान पुरुष यह कृत्य करे तो हम सोचने पे मजबूर हो जाते है की                    - शिक्षा तू भी काम न आई....... 


Saturday, December 14, 2019

Summer Vacation

Wo mama ka ghar, wo garmi ki chhuttiya
Wo maigi, wo mango, wo pant khol chicken khana
Wo amrud ke ped, wo nana ka gussa
Wo nani ki lori, wo mami ka dular
Wo mama ka padhana, wo mausi ka pyar
Wo badapan ka ahsaa, wo chhoto se ladna aur mar.
Bahut yaad aate hai bachapan ke din
Jab sochate hai akele, bhai bahano ke bin

Friday, December 13, 2019

मैं ख़फ़ा हूँ.......

ना समझे कोई की, मैं क्यों लगने लगा जुदा हूँ,
कैसे कहु मैं तुमसे, की मैं ख़फ़ा हूँ.

बिन जाने, अनजाने या, फिर जानबूझकर
तुमने बोला, कहा, किया मुझे पराया,
ये भी न सोचा , ये भी न जाना,
मैं हूँ वही जिसने, तुमसे तुमको ही चुराया.

हार गया मैं खुद से ही आज, जब से जानी तेरी बातें,
भूल गया तू, कटती नहीं थी एकदूजे बिन ये रातें।

कह दिया जो मन में आया, झूठा , सच्चा या बेमानी,
क्या गलती थी मेरी इसमें, जो हमने ना स्वप्न में जानी.

मिला लिया औरो को भी, अपनी इस करतूत में,
जिनको दिया दिल, और रखा था, हमने अपने ताज पे
कुछ भी करो तुम, रह लो कही तुम
हम है वही और वही रहेंगे, जो भागे एक आवाज पे

अच्छा नहीं की मुझे गिरा कर, तुम ऊँचे बन जाओगे
कहा जाओगे , जहाँ जाओगे, अंत में मुझे बुलाओगे

क्या  शाबित करना था तुमको, बुरा बना कर मुझे अंत में
भूल गए थे क्या तुम जीवन, बड़ा पड़ा है इस अनंत में।

हद होती है खुदगर्ज़ी की, हद होती है मनमर्जी की
समय छड़ीक है सुंदरता का, और छड़ीक अभिमान का
बड़ा बड़प्पन और संयम है, जो मैं मुझमे लिए हूँ
कैसे कहु मैं तुमसे, की मैं ख़फ़ा हूँ.

                              - अमित (बड़े दिल वाला)

Friday, December 6, 2019

मेरा देश बदल रहा है..

मेरा देश बदल रहा है, कुछ अच्छा हो रहा है.
अच्छे दिन आएंगे , अच्छे दिन आएंगे
सुना तो बहुत था, मगर यकीं नहीं था
लगा ये भी बस एक चुनावी सगूफा ही बन का रह जायेगा
मगर नहीं आज अच्छा दिन आया,
भले ही ये चुनावी वादा न हो,
भले ही किसी का पहले से तय इरादा न हो
पर कुछ हुआ, सोच बदली, देश बदला।
जय हो इन वीरो को, इनको सोच को
इनके किये काम को, पापियों के अंजाम को
अब नहीं खिलाएंगे, बिठा के जेल में,
जो कुछ भी होगा, जल्दी होगा.
घिनौनी सोच पे लगाम लगानी होगी
नहीं तो ऐसे ही चौराहे पे गोली खानी होगी
माँ, बहन , बेटी अब सुरक्छित होंगी.
सब पर कानून की अब कड़ी नजर होगी.
क्यों कुछ ही लोग इस करनी को अंजाम दे
क्यों नहीं न्याय व्यवस्था इसे अपना नाम दे
जब डर होगा, सीने में, भय होगा पीने  में.
कोई नहीं निकलेगा , गलत राहों पे ,
बहुत सकूँ होगा जीने में,
                            - अमित 

*****_ JINDAGI_*****

Jindagi ka safar bhi ajeeb hota hai,
pal bhar me naseeb cheer cheer hota hai.
soocha hua gar ho jaye mumkeen,
samajha jao yaaro ye hona tha ek din.
nahi to kabhi kuch ka kuch hai ho jata,
soocha mila paya sab hai kho jata.
ye kismat ka khela koi bhi na sajha,
ho jaye man ka to samjho achha.
nahi to na roona ye kya ho raha hai,
honi ka yaaro tal kya saka hai.

--------Amit Kumar Shrivastava(02/05/2005)

Sharing from my old collections.

कैसे बताऊँ मैं तुम्हें… ????

कैसे बताऊँ मैं तुम्हें….
मेरे लिये तुम कौन हो……
कैसे बताऊँ !!!
कैसे बताऊँ मैं तुम्हें
तुम धड्कनॊं का गीत हो,
जीवन का संगीत हो!
तुम जिन्दगी, तुम बन्दगी !
तुम रोशनी, तुम ताजगी!
तुम हर खुशी, तुम प्यार हो !
तुम प्रीत हो, मनमीत हो !
आँखों में तुम, यादों में तुम !
साँसों में तुम, आहों में तुम !
नींदों में तुम, ख्वाबों में तुम !
तुम हो मेरी हर बात में…
तुम हो मेरे दिन रात में !
तुम सुबह में तुम शाम में !
तुम सोच में तुम काम में !
मेरे लिये पाना भी तुम !
मेरे लिये खोना भी तुम !
मेरे लिये हँसना भी तुम !
मेरे लिये रोना भी तुम !……… और जागना सोना भी तुम !!!
जाऊँ कहीं देखूँ कहीं…
तुम हो वहाँ…तुम हो वहीं !
कैसे बताऊँ मैं तुम्हें…….. तुम बिन तो मैं कुछ भी नहीं !!!
कैसे बताऊँ मैं तुम्हें….मेरे लिये तुम कौन हो !!!
ये जो तुम्हारा रूप है…ये जिन्दगी की धूप है !
चन्दन से तरसा है ये बदन …बहती है ईसमें एक अगन !
ये शोखियाँ ये मस्तियाँ …. तुमको हवाओं से मिली !
जुल्फ़ें घटाओं से मिली !
होठों में कलियाँ खिल गयीं….. आखों को झीलें मिल गयीं !
चेहरे में सिमटी चाँदनी….. आवाज में है रागिनी !
शीशे के जैसा अंग है…फ़ूलों के जैसा रंग है !
नदियों के जैसी चाल है… क्या हुस्न है ..क्या हाल है !!!
ये जिस्म की रंगीनियाँ…… जैसे हजारों तितलियाँ !
बाहों की ये गोलाईयाँ…. आँचल में ये परछाईयाँ !!!
ये नगरियाँ हैं ख्वाब की…..कैसे बताऊँ मैं तुम्हें..हालत दिल – ऎ – बेताब की !!!
कैसे बताऊँ मैं तुम्हें….मेरे लिये तुम कौन हो !!!
कैसे बताऊँ….कैसे बताऊँ….
कैसे बताऊँ मैं तुम्हें….मेरे लिये तुम धरम हो !!!
मेरे लिये ईमान हो !
तुम ही ईबादत हो मेरी…… तुम ही तो चाहत हो मेरी !
तुम ही अरमान हो मेरा !
तकता हूँ मैं हर पल जिसे.. वही तो तस्वीर हो तुम.
तुम ही मेरी तकदीर हो.
तुम ही सितारा हो मेरा…. तुम ही नजारा हो मेरा.
यूँ ध्यान में मेरे हो तुम..जैसे मुझे घेरे हो तुम.
पूरब में तुम, पश्चिम में तुम!!!….उत्तर में तुम, दक्षिण में तुम !!!
सारे मेरे जीवन में तुम.
हर पल में तुम…हर छिन में तुम !!!
मेरे लिये रस्ता भी तुम…. मेरे लिये मन्जिल भी तुम.
मेरे लिये सागर भी तुम..मेरे लिये साहिल भी तुम.
मैं देखता बस तुमको हूँ….मैं सोचता बस तुमको हूँ.
मैं जानता बस तुमको हूँ… मैं मानता बस तुमको हूँ.
तुम ही मेरी पहचान हो…!!!
कैसे बताऊँ मैं तुम्हें…. देवी हो तुम मेरे लिये.
मेरे लिये भगवान हो !!!
कैसे बताऊँ मैं तुम्हें….मेरे लिये तुम कौन हो !!!
कैसे……….. ????

                                          -  दिल के करीब  -   फ्रॉम - एल्बम : वजूद (1998)
घटना परिचय - 

एक बार खुद को, इसी मक़ाम पे पाया था 
बार बार मन में, यही ख्वाब दोहराया था. 
डरते थे कहने को तो, इसका ही सहारा था,
खुद का कुछ नहीं तो, "वजूद" का किनारा था। 

हम भी "नाना" थे और "माधुरी" का साया था,
ख्वाब बड़े हसीं थे, हमने जिन्हे अपनाया था. 
दोस्तों का साथ था, और जवानी का आलम,
साल बीते, दोस्त बिछड़े, हमको मिला बालम।

अब कह नहीं सकते, जवानी की बातें,
बाँट नहीं सकते कैसे कटी रातें। 
समझ के बचपन, जो माफ़ करे भूले,
ऐसा नहीं हमदम, जो हमको फिर क़बूले। 

                    - अमित (मीतू का)

भय ही प्रबल है।

दो उल्लू एक वृक्ष पर आ कर बैठे। एक ने साँप अपने मुँह में पकड़ रखा था।  दूसरा एक चूहा पकड़ लाया था।  दोनों जैसे ही वृक्ष पर पास-पास आकर बैठे।...